नाटक-एकाँकी >> सम्पूर्ण नाटक सम्पूर्ण नाटकभगवतीचरण वर्मा
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भगवती चरण वर्मा के सभी श्रेष्ठ नाटक इस पुस्तक में उपलब्ध हैं उन सभी का वर्णन हुआ है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भगवतीचरण वर्मा बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकार थे। अपने विचारों और
जीवनानुभवों को उन्होंने उपन्यास, कहानी, कविता और नाटक, आदि अनेक
सर्जनात्मक विधाओं में अभिव्यक्त किया है।
इस पुस्तक में भगवती बाबू के सभी गद्य और पद्य नाटकों को शामिल किया गया
है। उनके प्रसिद्ध नाटक ‘रुपया तुम्हें खा गया’ के
अलावा रेडियो के लिए लिखे हुए नाटक कर्ण, द्रौपदी, महाकाल, और तीसरा तारा
भी इस संकलन में प्रस्तुत है।
स्वयं भगवती बाबू के शब्दों में ‘जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं, वे सब के सब मंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किये जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेडियो के लिए लिखे थे-उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा-बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।’ इस संग्रह में शामिल उनके गद्य नाटक जहाँ भगवती बाबू की रंगमंच की समझ और सामर्थ्य का पता देते हैं, वहीं पद्य नाटकों से हमें उनकी काव्य प्रतिभा का नये सिरे से लोहा मान लेना पड़ता है।
स्वयं भगवती बाबू के शब्दों में ‘जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं, वे सब के सब मंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किये जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेडियो के लिए लिखे थे-उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा-बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।’ इस संग्रह में शामिल उनके गद्य नाटक जहाँ भगवती बाबू की रंगमंच की समझ और सामर्थ्य का पता देते हैं, वहीं पद्य नाटकों से हमें उनकी काव्य प्रतिभा का नये सिरे से लोहा मान लेना पड़ता है।
भूमिका
मैंने सृजनात्मक साहित्य की प्राय: सभी विधाओं को समय-समय पर अपनाया है और
मुझे सन्तोष इस बात का है कि उन विधाओं में रची हुई कृतियों में पाठकों ने
रुचि ली है। प्रस्तुत संग्रह सम्पूर्ण नाटकों का संग्रह है।
मैंने नाटक बहुत कम लिखे हैं, हिन्दी में किसी सुनियोजित रंगमंच के अभाव में नाटक लिखने की प्रेरणा ही नहीं मिली मुझे। मित्रों ने और समय-समय पर अपने ही आग्रहवश कुछ नाटक लिख डाले हैं और अभी तक लिखे हुए अपने समस्त नाटकों का संग्रह मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ। बिखरी हुई छोटी-छोटी कृतियों को बटोरने में लोगों को कठिनाइयाँ होती है।
इस संग्रह में मेरे अपने गद्य में लिखे हुए नाटकों के साथ मैंने पद्य में लिखे नाटकों को भी सम्मिलित कर दिया है। जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं वे सब-के-सब रंगमंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किए जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेड़ियों के लिए लिखे थे-उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।
गद्य नाटकों में, दो तो सम्पूर्ण नाटक हैं, बाकी एकांकी हैं। पद्य नाटकों में ‘तारा’ मेरा सबसे पहला नाटक है जो रंगमंच पर जैसा का तैसा प्रस्तुत किया जा सकता है। अन्य नाटक, जैसे मैं निवेदन कर चुका हूँ, रेड़ियो पर प्रसारण के लिए लिखे गए हैं और उनमें रंगमंच की विधा पर ध्यान नहीं दिया गया है। लेकिन है तो वह नाटक ही और पहले ही बता चुका हूँ कि कुछ परिवर्तनों के साथ अभिनीत हो सकते हैं इसीलिए मैं उन्हें भी इस संग्रह में सम्मिलित करता हूँ।
मैंने नाटक बहुत कम लिखे हैं, हिन्दी में किसी सुनियोजित रंगमंच के अभाव में नाटक लिखने की प्रेरणा ही नहीं मिली मुझे। मित्रों ने और समय-समय पर अपने ही आग्रहवश कुछ नाटक लिख डाले हैं और अभी तक लिखे हुए अपने समस्त नाटकों का संग्रह मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ। बिखरी हुई छोटी-छोटी कृतियों को बटोरने में लोगों को कठिनाइयाँ होती है।
इस संग्रह में मेरे अपने गद्य में लिखे हुए नाटकों के साथ मैंने पद्य में लिखे नाटकों को भी सम्मिलित कर दिया है। जहाँ तक गद्य में लिखे नाटक हैं वे सब-के-सब रंगमंच पर प्रस्तुत हो चुके हैं और किए जा सकते हैं। पद्य नाटक मैंने रेड़ियों के लिए लिखे थे-उनमें नाटकीयता के साथ कवित्व है और रंगमंच पर प्रस्तुत करने के लिए उनमें थोड़ा बहुत हेर-फेर किया जा सकता है।
गद्य नाटकों में, दो तो सम्पूर्ण नाटक हैं, बाकी एकांकी हैं। पद्य नाटकों में ‘तारा’ मेरा सबसे पहला नाटक है जो रंगमंच पर जैसा का तैसा प्रस्तुत किया जा सकता है। अन्य नाटक, जैसे मैं निवेदन कर चुका हूँ, रेड़ियो पर प्रसारण के लिए लिखे गए हैं और उनमें रंगमंच की विधा पर ध्यान नहीं दिया गया है। लेकिन है तो वह नाटक ही और पहले ही बता चुका हूँ कि कुछ परिवर्तनों के साथ अभिनीत हो सकते हैं इसीलिए मैं उन्हें भी इस संग्रह में सम्मिलित करता हूँ।
भगवतीचरण वर्मा
पात्र-परिचय
(एकांकी)
चूड़ामणि : एक कवि
मार्तण्ड : एक चित्रकार
परमानन्द : एक प्रकाशक
रामनाथ : एक रईस
बुलाकीदास : मकान मालिक
स्थान- किसी बड़े नगर के एक बड़े मकान का एक कमरा।
समय- दिन में कोई समय।
मार्तण्ड : एक चित्रकार
परमानन्द : एक प्रकाशक
रामनाथ : एक रईस
बुलाकीदास : मकान मालिक
स्थान- किसी बड़े नगर के एक बड़े मकान का एक कमरा।
समय- दिन में कोई समय।
एक बड़ा-सा कमरा। कमरे में किसी प्रकार का कोई फर्नीचर नहीं है। अन्दर की
तरफ कमरे के आधे भाग में तस्वीरें बिखरी पड़ी हैं और दूसरे आधे भाग में
तस्वीरें बिखरी पड़ी हैं एक विंग से लेकर दूसरे विंग तक एक चटाई बिछी है।
चटाई के बीचोबीच एक तकिया है जो स्टेज के सामने न होकर दोनों विंगों के
सामने है। तकिए को अपनी पीठ पर रखकर विंग की ओर मुँह किए एक ओर पण्डित
चूड़ामणि बैठे हैं और दूसरी ओर मिस्टर मार्तण्ड बैठे हैं। चूड़ामणि के आगे
एक मोटा रजिस्टर है जिस पर एक अधबनी तस्वीर लगी है। मार्तण्ड के हाथ में
एक तूली है और वह तसवीर बना रहा है।
चूड़ामणि :लिखते-लिखते कलम रोककर, पर उसकी आँखें रजिस्टर पर ही लगी हैं
सुना मार्तण्ड ! आज मैं प्रकाशक परमानन्द के यहाँ गया था। वह बोला कि किताबें बिकती ही नहीं, पैसा कहाँ से आवे ! एक पैसा मेरे पास नहीं। और बदमाश ने कल ही एक मोटर खरीदी है।
मार्तण्ड : तूली रोककर और तसवीर की ओर ध्यान से देखते हुए
भाई, यह तो बुरी सुनाई। मैं तो सोचता था कि तुम रुपये ले आए होगे, नहीं तो मैं ही लाला रामनाथ के हाथ सात रुपए में ही तसवीर बेच देता।
चूड़ामणि : रजिस्टर पर आँखें गड़ाता है, मस्तक पर बल पड़ जाते हैं।
क्या कहा ? तुम भी रुपये नहीं लाए ?
मार्तण्ड : चित्र पर तूली से रंग देते हुए
लाता कैसे ? भला बताओ, पचाल रुपए की तस्वीर के अगर कोई पचीस तक दे, तो भी वह बेची जा सकती है। लेकिन जब कोई यह कहे कि मैं सात रुपए के ऊपर एक कौड़ी भी नहीं दे सकता, तब भला तुम्हीं बतलाओ मैं क्या कर सकता था।
चूड़ामणि : लिखता हुआ
हूँ ! ऐसी बात है ! तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो मैं उससे साफ कहता कि तुम्हारे बाप ने भी कभी तस्वीर खरीदी है कि तुम्हीं खरीदोंगे-और यह कहकर मैं सीधा वापस आता।
मार्तण्ड : तसवीर बनाता हुआ
अच्छा होता यार कि तुम्हीं मेरी जगह वहाँ होते।
चूड़ामणि : लिखता हुआ
तो क्या तुम बुद्धू की तरह चले आए ?
मार्तण्ड : तसवीर बनाना रोककर तसवीर की ओर देखता है
नहीं यार ! मैंने तो उठने की तैयारी करते हुए सिर्फ इतना कहा-तुम चोर हो। और जब उसने सिर उठाया तब मुझसे न रहा गया और मैंने उससे कहा-तुम उठाईगीर हो ! और जब उसने मेरी तरफ देखा तब मैं उससे इतना कहने का लालच न रोक सका और मैंने उससे कहा-तुम गिरहकट हो !
चूड़ामणि : हँसते हुए रजिस्टर को देखता है
बात तो तुमने बेजा नहीं कही।
मार्तण्ड : मुस्कराते हुए तसवीर पर तूली चलाने लगता है
नहीं, बात तो बेजा नहीं थी, लेकिन जा, बात कहने के जोश में मैं यह भूल गया था कि मैं उसके घऱ में बैठा हूँ और उसके दस-पाँच नौकर भी हैं।
चूड़ामणि : कलम जमीन पर ठोंकते हुए
तो फिर तुम पिटे भी ?
मार्तण्ड : तूली रोककर
अगर पिटता, तो भी अच्छा था क्योंकि इधर बहुत दिनों से पिटा नहीं हूँ, लेकिन इसकी नौबत ही न आईं। उसने नौकरों को आवाज़ दी और चार आदमी कमरे में घुस आए। उसने कहा-मारो। और मैं समझा कि मुझसे कह रहा है। लिहाजा मैंने ताना घूँसा, और वह बैठा था सामने। सो घूँसा ठीक उसकी नाक पर पड़ा।
चूड़ामणि : चौंककर हाथ ऊपर उठाते हुए
वेल डन ! शाबाश !
फिर लिखने लगता है
लेकिन तुम बच कैसे आए ?
मार्तण्ड : तूली नीचे रखते हुए
यह बात हुई कि नौकरों ने सम्हाला उसे, और मैं तसवीर उठाकर वहाँ से भागा। लोग ले-दे करते ही रहे-और मैंने सीधे घर पहुँच कर साँस ली।
कुछ रुककर
लेकिन आएगा वह जरूर ! गलती से मैं अपनी तस्वीर की जगह उसके बाप की तस्वीर, जो उसी दिन विलायत से बनकर आई थी, उठा लाया हूँ।
चूड़ामणि : लिखते हुए
खैर, चिन्ता न करो। मैं परमानन्द की सोने की घड़ी उठाकर यह कहता भागा कि अगर दो घंटे के अन्दर रुपया न दिया तो घड़ी मैं बेच दूँगा।
जेब से घड़ी निकालकर वह देखता है। बाहर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ आती है। दोनों अपना काम रोककर दरवाज़े की ओर देखते हैं।
आवाज़ : चूड़ीमणि जी !
मार्तदण्ड : नहीं हैं।
मुँह फेरकर तस्वीर बनाने लगता है।
आवाज़ : मार्तण्ड जी !
चूड़ामणि : नहीं हैं !
मुँह फेरकर लिखने लगता है।
आवाज़ : आप दोनो मौजूद हैं। किवाड़ खोलिए।
दोनों : नहीं खोलेंगे।
आवाज़ : हर दरवाज़ा तोड़ देंगे।
चूड़ामणि : बड़ी खुशी से ! आपका दरवाजा है !
मार्तण्ड : और अपनी चीज़ अगर आप तोड़े तो भला हम रोकने वाले कौन होते हैं।
आवाज़ : हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि दरावाजा खोलिए।
चूड़ामणि : किससे ? चूड़ामणि से या मार्तण्ड से ?
आवाज़ : दोनों से !
मार्तण्ड : दरवाजा खोलने का काम केवल एक आदमी ही कर सकता है।
आवाज़ : अगर आप लोग दरवाजा नहीं खोलते तो मैं बाहर से ताला बन्द किए देता हूँ।
चूड़ामणि : इसी हालात में हमें दरवाजा तोड़ना पड़ेगा।
चूड़ामणि :लिखते-लिखते कलम रोककर, पर उसकी आँखें रजिस्टर पर ही लगी हैं
सुना मार्तण्ड ! आज मैं प्रकाशक परमानन्द के यहाँ गया था। वह बोला कि किताबें बिकती ही नहीं, पैसा कहाँ से आवे ! एक पैसा मेरे पास नहीं। और बदमाश ने कल ही एक मोटर खरीदी है।
मार्तण्ड : तूली रोककर और तसवीर की ओर ध्यान से देखते हुए
भाई, यह तो बुरी सुनाई। मैं तो सोचता था कि तुम रुपये ले आए होगे, नहीं तो मैं ही लाला रामनाथ के हाथ सात रुपए में ही तसवीर बेच देता।
चूड़ामणि : रजिस्टर पर आँखें गड़ाता है, मस्तक पर बल पड़ जाते हैं।
क्या कहा ? तुम भी रुपये नहीं लाए ?
मार्तण्ड : चित्र पर तूली से रंग देते हुए
लाता कैसे ? भला बताओ, पचाल रुपए की तस्वीर के अगर कोई पचीस तक दे, तो भी वह बेची जा सकती है। लेकिन जब कोई यह कहे कि मैं सात रुपए के ऊपर एक कौड़ी भी नहीं दे सकता, तब भला तुम्हीं बतलाओ मैं क्या कर सकता था।
चूड़ामणि : लिखता हुआ
हूँ ! ऐसी बात है ! तुम्हारी जगह अगर मैं होता तो मैं उससे साफ कहता कि तुम्हारे बाप ने भी कभी तस्वीर खरीदी है कि तुम्हीं खरीदोंगे-और यह कहकर मैं सीधा वापस आता।
मार्तण्ड : तसवीर बनाता हुआ
अच्छा होता यार कि तुम्हीं मेरी जगह वहाँ होते।
चूड़ामणि : लिखता हुआ
तो क्या तुम बुद्धू की तरह चले आए ?
मार्तण्ड : तसवीर बनाना रोककर तसवीर की ओर देखता है
नहीं यार ! मैंने तो उठने की तैयारी करते हुए सिर्फ इतना कहा-तुम चोर हो। और जब उसने सिर उठाया तब मुझसे न रहा गया और मैंने उससे कहा-तुम उठाईगीर हो ! और जब उसने मेरी तरफ देखा तब मैं उससे इतना कहने का लालच न रोक सका और मैंने उससे कहा-तुम गिरहकट हो !
चूड़ामणि : हँसते हुए रजिस्टर को देखता है
बात तो तुमने बेजा नहीं कही।
मार्तण्ड : मुस्कराते हुए तसवीर पर तूली चलाने लगता है
नहीं, बात तो बेजा नहीं थी, लेकिन जा, बात कहने के जोश में मैं यह भूल गया था कि मैं उसके घऱ में बैठा हूँ और उसके दस-पाँच नौकर भी हैं।
चूड़ामणि : कलम जमीन पर ठोंकते हुए
तो फिर तुम पिटे भी ?
मार्तण्ड : तूली रोककर
अगर पिटता, तो भी अच्छा था क्योंकि इधर बहुत दिनों से पिटा नहीं हूँ, लेकिन इसकी नौबत ही न आईं। उसने नौकरों को आवाज़ दी और चार आदमी कमरे में घुस आए। उसने कहा-मारो। और मैं समझा कि मुझसे कह रहा है। लिहाजा मैंने ताना घूँसा, और वह बैठा था सामने। सो घूँसा ठीक उसकी नाक पर पड़ा।
चूड़ामणि : चौंककर हाथ ऊपर उठाते हुए
वेल डन ! शाबाश !
फिर लिखने लगता है
लेकिन तुम बच कैसे आए ?
मार्तण्ड : तूली नीचे रखते हुए
यह बात हुई कि नौकरों ने सम्हाला उसे, और मैं तसवीर उठाकर वहाँ से भागा। लोग ले-दे करते ही रहे-और मैंने सीधे घर पहुँच कर साँस ली।
कुछ रुककर
लेकिन आएगा वह जरूर ! गलती से मैं अपनी तस्वीर की जगह उसके बाप की तस्वीर, जो उसी दिन विलायत से बनकर आई थी, उठा लाया हूँ।
चूड़ामणि : लिखते हुए
खैर, चिन्ता न करो। मैं परमानन्द की सोने की घड़ी उठाकर यह कहता भागा कि अगर दो घंटे के अन्दर रुपया न दिया तो घड़ी मैं बेच दूँगा।
जेब से घड़ी निकालकर वह देखता है। बाहर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ आती है। दोनों अपना काम रोककर दरवाज़े की ओर देखते हैं।
आवाज़ : चूड़ीमणि जी !
मार्तदण्ड : नहीं हैं।
मुँह फेरकर तस्वीर बनाने लगता है।
आवाज़ : मार्तण्ड जी !
चूड़ामणि : नहीं हैं !
मुँह फेरकर लिखने लगता है।
आवाज़ : आप दोनो मौजूद हैं। किवाड़ खोलिए।
दोनों : नहीं खोलेंगे।
आवाज़ : हर दरवाज़ा तोड़ देंगे।
चूड़ामणि : बड़ी खुशी से ! आपका दरवाजा है !
मार्तण्ड : और अपनी चीज़ अगर आप तोड़े तो भला हम रोकने वाले कौन होते हैं।
आवाज़ : हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि दरावाजा खोलिए।
चूड़ामणि : किससे ? चूड़ामणि से या मार्तण्ड से ?
आवाज़ : दोनों से !
मार्तण्ड : दरवाजा खोलने का काम केवल एक आदमी ही कर सकता है।
आवाज़ : अगर आप लोग दरवाजा नहीं खोलते तो मैं बाहर से ताला बन्द किए देता हूँ।
चूड़ामणि : इसी हालात में हमें दरवाजा तोड़ना पड़ेगा।
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